जयपुर। इन दिनों समलैंगिक विवाह का मुद्दा काफी सुर्खियों में है ऐसे में केंद्र सरकार ने 10 मई को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजस्थान समेत आंध्र प्रदेश, असम ने इस शादी को कानूनी मान्यता देने के लिए याचिकाकर्ताओं की दलीलों का विरोध किया है।
समलैंगिग विवाह का इन राज्यों द्वारा विरोध
केंद्र सरकार के पेशकश कर्ता सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ को जानकारी देते हुए बताया कि राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश मणिपुर जैसे राज्यों ने कहा है कि इस विषय पर बहुत व्यापक और विस्तृत चर्चा की जरुरत है और वह तत्काल प्रभाव से जवाब देने में सक्षम नहीं होंगे।
इन राज्यों को लिखा गया पत्र
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सामने 18 अप्रैल को दायर अपने हलफनामे में कहा था कि सभी राज्यों को चिट्ठी लिखी गई थी और संबंधित याचिकाओं में उठाए गए मौलिक मुद्दे पर उनके विचार आमंत्रित किए थे। वहीं तुषार मेहता ने कहा कि मैंने पहले कहा था कि हमने राज्य सरकारों को पत्र लिखे हैं. जिनमें राजस्थान समेत उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, असम समेत सिक्किम से अभी तक उत्तर मिले हैं. लेकिन मैं उसे पढ़ नहीं रहा हूं. मै इसे रिकॉर्ड पर ला रहा हूं.
याचिकाकर्ताओं की मांग के खिलाफ
सॉलिसिटर जनरल ने बताया, “राजस्थान ने इस मामले की जांच की है और हम याचिकाकर्ताओं की मांग का विरोध करते हैं।” उन्होंने बताया कि कुछ राज्यों ने इस मुद्दे को बहुत ही संवेदनशील बनाया है और वे इसका तुरंत जवाब नहीं दे सकते।
व्यापक चर्चा की आवश्यकता- मणिपुर
वहीं मणिपुर ने इस विषय पर व्यापक चर्चा की आवश्यकता जताई है. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने संबंधी पर पीठ बुधवार को नौवें दिन सुनवाई कर रही थी. दलीलें पूरी नहीं होने की वजह से 11 मई को जारी रहेंगी। वहीं आंध्रप्रदेश सरकार के विशेष मुख्य सचिव ने बताया कि राज्य सरकार समलैंगिक शादी के विरुद्ध है. उत्तर प्रदेश के सरकार ने कहा कि विषय संवेदनशील है और इसके किसी भी फैसले का समाज के अलग-अलग समुदायों पर गहरा असर पड़ेगा। इस विषय के लिए यूपी सरकार ने अतिरिक्त समय की मांग की है. वहीं महाराष्ट्र सरकार की भी यही राय है और असम सरकार ने कहा कि मामले की नए सिरे से व्याख्या की जरुरत है।