जयपुर। देवताओं में पहले पूजनीय विघ्नहर्ता कपड़ा नगरी में वल्लाल गणेश के रूप में विराजमान हैं। देश के प्राचीन मंदिरों में इस मंदिर की विशेषता शामिल है कि यहां सिद्ध पीठ वल्लाल गणेश का दैनिक श्रृंगार होता है। एक बार जो वस्त्र उन्हें उपहार के रूप में दिए जाते हैं, उन्हें फिर से उपयोग नहीं किया जाता है।
साल में एक बार कपड़ों का होता है विसर्जन
आपको बता दें कि राजस्थान के सिद्ध पीठ वल्लाल गणेश भगवान से जुड़ी एक परंपरा है जो प्रदेश में मानी जाती है. ऐसा माना जाता है कि सिद्ध पीठ वल्लाल गणेश भगवान जो वस्त्र धारण कर लेते हैं उन्हें दोबारा नहीं पहनते हैं. पाली के रेलवे स्टेशन रोड पर नागा बाबा बगेची में इस सिद्धपीठ का स्थान है। पुराणों के अनुसार सिंध प्रांत जाने वाले मार्ग पर भगवान वल्लाल गणेश सिद्धपीठ है। इस मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है क्योंकि यह उसी मार्ग पर स्थित है। इस धार्मिक स्थल के प्रति लोगों की अटूट विश्वास है। सुबह 5:30 बजे और शाम को 7:30 बजे मंदिर में आरती के समय जयकारे गूंजते हैं। शहर के किसी भी घर में मांगलिक कार्य होने पर वहां के लोग सबसे पहले वल्लाल गणेश को आमंत्रित करते हैं।
गंगा में वस्त्र का होता है विसर्जन
मंदिर में स्थित भगवान वल्लाल गणेश की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाया जाता है। इस मूर्ति के पीठ पर नाग लिपटा होता है। मूर्ति के शीर्ष पर पांच नागों की मुकुट होती है। प्राचीन मूर्ति के पास ही एक नई मूर्ति नए मंदिर में स्थापित की गई है। संत सुरेश गिरी ने बताया कि हर दिन वल्लाल गणेश को पहनाए जाने वाले वस्त्रों का उपयोग एक बार ही किया जाता है। ये वस्त्र हरिद्वार जाकर गंगा में विसर्जित किए जाते हैं। नागा बाबा बगेची में नागा साधुओं के समाधियां भी होती हैं। भगवान वल्लाल गणेश की पूजा-अर्चना भी नागा साधु ही करते हैं।