जयपुर: देश ने आज से 48 वर्ष पूर्व एक काला अध्याय देखा था। जब 25 जून 1975 को राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कांग्रेस की सरकार ने आपातकाल को देश पर थोपा था। आज भारत में ऐतिहासिक आपातकाल के 48 वर्ष पूरे हो गए। 21 महीने तक लागू आंतरिक आपातकाल के दौरान 1 लाख से ज्यादा राजनीतिक विरोधियों को जेल में डाला गया था।
नागरिकों के अधिकार छीन लिए गए
आपातकाल के दौरान आम नागरिकों के जीने के अधिकार भी छीन लिए गए थे। राजनीतिक विरोधियों पर आतंरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा) के तहत कार्रवाई होती थी। मीसा कानून वाले आरोपियों की सुनवाई अदालत में भी नहीं होती थी। कई पत्रकारों को भी जेल में डाल दिया गया था। 21 महीने की आपातकाल ने भारत के लोकतंत्र को हिला कर रख दिया था। इसे लागू करने में देश के 5 नेताओं की अहम भूमिका थी। जिस पर बाद में सवाल भी उठा। आज जब आपातकाल के 48 वर्ष पूरे होने पर हम उन्हीं 5 नेताओं के बारे में जानते हैं-
- सिद्धार्थ शंकर रे– स्वतंत्रता संग्राम सेनानी देशबंधु चित्तरंजन दास के पोते और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे की आपातकाल लगाने में बड़ी भूमिका थी। शंकर रे ने ही इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने की सलाह दी थी। आपातकाल का प्रस्ताव तैयार करने से लेकर वरिष्ठ नेताओं तक को मनाने का काम शंकर रे ने ही किया था। 2009 में बीबीसी को दिए गए इंटरव्यू में रे ने आपातकाल को सही भी ठहराया था। इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उस वक्त चारों तरफ अफरा-तफरी मची हुई थी और उसे कंट्रोल करने के लिए आपातकाल लगाना जरूरी था।
- बंसीलाल– हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री और संजय गांधी के करीबी बंसीलाल की भी गिनती आपातकाल के खलनायकों में होती है। इंदिरा गांधी के चचेरे भाई और गुजरात के राज्यपाल रहे बीके नेहरू ने अपनी अपनी आत्मकथा, ‘नाइस गाइज़ फ़िनिश सेकेंड’ में इसका जिक्र भी किया है। नेहरू लिखते हैं- मैं आपातकाल लगने से पहले बंसीलाल से मिला था। उन्हें मैंने राष्ट्रपति शासन के बारे में बताया तो वे हरियाणवी लहजे में बोले- अरे नेहरू साहब, ये सब इलेक्शन-फिलेक्शन का झगड़ा खत्म करिए। मैं तो कहता हूं बहनजी को प्रेसिडेंट फॉर लाइफ बना दीजिए।
- संजय गांधी– आपातकाल लगाने को लेकर अपनी मां को मनाने का काम संजय ने ही किया था। संजय उस वक्त कांग्रेस के युवा संगठन में थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट से इंदिरा की सदस्यता खारिज करने के बाद संजय ने उनसे पीएम कुर्सी न छोड़ने की अपील की थी। संजय का तर्क था कि अगर किसी दूसरे व्यक्ति को प्रधानमंत्री की कुर्सी दी गई तो वे तख्तापलट भी कर सकते हैं। आपातकाल की घोषणा के बाद संजय ने प्रशासन की पूरी कमान अपने हाथों में ले ली।
- इंदिरा गांधी– 1971 में रायबरेली के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने जीत हासिल की। समय से पहले कराए गए इस चुनाव में कांग्रेस को पूरे देश में जबरदस्त जीत मिली थी, लेकिन राजनरायण ने इंदिरा की सांसदी के खिलाफ कोर्ट में चुनौती दे दी। राजनारायण का आरोप था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी और संसाधनों का दुरुपयोग किया है, इसलिए उनका चुनाव निरस्त कर दिया जाए। 1975 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा की बेंच ने राजनारायण के आरोप को सही माना और इंदिरा की सदस्यता रद्द कर दी।
इससे बौखलाई इंदिरा गांधी ने कैबिनेट की मीटिंग बुला ली। इंदिरा ने आनन-फानन में आंतरिक आपातकाल लगाए जाने की सिफारिश कर दी। आपातकाल लगाने की दूसरी वजह सरकार के खिलाफ आंदोलन था। देश के कई हिस्सों में महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ विपक्षी नेताओं ने आंदोलन शुरू कर दिया था।
आपातकाल की घोषणा खुद इंदिरा गांधी ने ही की थी। बाद में एक इंटरव्यू में भी इंदिरा ने स्वीकार किया कि भारत को एक ‘शॉक ट्रीटमेंट’ की जरूरत थी, इसलिए आपातकाल लगाया गया।
- फखरुद्दीन अली अहमद– 1974 में बड़े दावेदार गोपाल स्वरूप पाठक की अनदेखी कर इंदिरा गांधी ने फखरुद्दीन अली अहमद को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाया था। अहमद राष्ट्रपति बनने के एक साल बाद ही इंदिरा का यह कर्ज चुकता कर दिया। 1975 को इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने की बात राष्ट्रपति से कहने गईं, जिस पर अहमद ने बिना विचार किए सहमति दे दी। अहमद ने इंदिरा से कहा कि अगर कोई ऑप्शन नहीं है, तो फाइल भेज दीजिए।
प्रधानमंत्री कार्यालय से फाइल जाने के तुरंत बाद राष्ट्रपति अहमद ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए और त्वरित गति में लिए गए इस फैसले ने राष्ट्रपति की भूमिका पर सवाल खड़े कर दिए। हालांकि, अहमद ने कभी भी इस पर कोई जवाब नहीं दिया।