Friday, November 22, 2024

Rajasthan Election 2023: उदयपुर की इस सीट पर 1977 से 2018 तक एक ही परिवार को दिया टिकट, क्या इस बार बदल सकता है रिवाज

जयपुर: उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट की जो राजस्थान के उदयपुर जिले में आती है। उदयपुर जिले की आठ विधानसभा सीटों में उदयपुर ग्रामीण विधानसभा आदिवासी बहुल क्षेत्र है। साल 1977 के परिसीमन में उदयपुर ग्रामीण विधानसभा बनाई गई और पहली बार चुनाव हुआ। राजस्थान विधानसभा चुनाव होने में महज पांच महीने रह गए हैं। चुनाव को देखते हुए कांग्रेस हर सीट पर दावेदारों को लेकर गणित बैठाने में लगी हुई है, लेकिन एक सीट ऐसी है पार्टी जिस पर पार्टी ने 1977 से 2018 तक एक ही परिवार को टिकट दिया। वो है उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट, लेकिन अब चर्चाएं हो रही है कि इस रिवाज को बदला जाए और इस सीट पर किसी नए चेहरे को सामने लाया जाए।

उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट राजस्थान की महत्वपूर्ण विधानसभा सीटों में से एक है, इस सीट पर 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट के परिणाम इस बार किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है। लेकिन हम आपके लिये लाए हैं विस्तृत कवरेज, जिसमें आप अपने विधानसभा सीट पर प्रत्याशियों की सूची, पार्टी प्रचार व अन्य खबरों के साथ-साथ जान सकेंगे यहां के विजेता, उपविजेता, वोट शेयर और बहुत कुछ।

2018 में हुई बीजेपी की जीत

बात करें 2018 विधानसभा चुनाव की तो 2018 में उदयपुर ग्रामीण में कुल 51 प्रतिशत वोट पड़े। 2018 में भारतीय जनता पार्टी से फूल सिंह मीना ने कांग्रेस के विवेक कटारा को 19 वोटों के अंतर से हराया था।

कहने को तो यह ग्रामीण सीट है, लेकिन शहर का अधिकांश हिस्सा इसी सीट में आता है। यह जनजाति आरक्षित सीट है। अभी यहां के विधायक फूल सिंह मीणा हैं, जो भारतीय जनता पार्टी से हैं. उदयपुर ग्रामीण विधानसभा कहने को ग्रामीण है, लेकिन नगर निगम से 20 वार्ड इसी ग्रामीण क्षेत्र में आते हैं। ये सीट शहर का बड़ा हिस्सा कवर करती है। इसी कारण यहां शहर की राजनीति हमेशा हावी रहती है। इस सीट पर दो बार से बीजेपी के फूल सिंह मीणा विधायक है। मीणा ने 2013 चुनाव में कांग्रेस नेता सज्जन कटारा को हराया था। इसके बाद 2018 के चुनाव में सज्जन कटारा के बेटे को मात दी।

टूट गया वर्षो पुराण मिथ

एक्सपर्ट के मुताबिक 2018 तक यहां पर चुना गया विधायक सदैव सरकार में रहा। यानी जिस पार्टी का विधायक यहां से चुना गया सरकार उसी की बनी। हालांकि 2018 में यह मिथक टूट गया और मौजूदा विधायक फूल सिंह मीणा फिलहाल प्रतिपक्ष में हैं। सीट की खासियत यह है कि अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस की ओर से यहां से खेमराज कटारा या उनका परिवार का ही प्रत्याशी रहा है। वहीं बीजेपी लगातार यहां चेहरे बदलती रही। इस सीट से नंदलाल मीणा, चुन्नीलाल गरासिया, भेरूलाल मीणा और खेमराज कटारा मंत्री बने थे। बाद में इसी सीट से वंदना मीणा, सज्जन कटारा और फूल सिंह मीणा भी विधायक बने, लेकिन ये लोग मंत्री पद की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए। वैसे यह सीट उदयपुर शहर का ग्रामीण हिस्सा है, लेकिन खास बात यह है कि इस सीट में शहर के 20 वार्ड भी आते हैं। वहीं शहर के पास स्थित गिर्वा और बड़गांव पंचायत समिति के कुछ गांव भी इसमें शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ये कह सकते हैं कि नाम इसका विधानसभा ग्रामीण है, लेकिन इस सीट के अधिकांश हिस्सा शहर का ही है। शहर के जो 20 वार्ड हैं, वो हर चुनाव में बीजेपी के वोट बैंक ही माने जाते हैं।

बीजेपी-कांग्रेस का पास मजदूत विकल्प की कमी

अगर बात करें गांवों की तो यहां पर बीजेपी और कांग्रेस की बराबरी की टक्कर रहती है। यहां के मौजूदा विधायक फूल सिंह दो बार से विधायक हैं, लेकिन बीजेपी में गाहे-बगाहे उनके खिलाफ भी स्वर उठते रहते हैं। इस बार भी कई नए दावेदार अपनी जोर आजमाइश कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि कांग्रेस में भी कटारा परिवार के कई विरोधी हैं और बदलाव की मांग भी करते रहते हैं। लेकिन दोनों ही पार्टियों में फिलहाल इस वक्त कोई मजबूत विकल्प दिखाई नहीं पड़ रहा है। वहीं मौजूदा विधायक फूल सिंह के लिए कहा जाता है कि वो पूर्व नेता प्रतिपक्ष और असम के माजूदा राज्यपाल गुलाबचंद कटारिया के खास माने जाते हैं।

इस सीट का क्या है मुद्दा

अगर बात करें यहां के मुख्य मुद्दे की तो यहां का मुख्य मुद्दा पानी, बिजली की शिकायत तो रहती ही है, लेकिन यहां पंचायतों का परिसीमन होना यहां का मुख्य मुद्दा है। फिलहाल इस विधानसभा का अधिकांश हिस्सा शहरी है जो यूआईटी पेरफेरी में आता है, जिसमें जमीन का अधिकार पंचायत के पास ना होकर यूआईटी (यूनिट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट) के पास रहता है। यहां पहले भी कई बार परिसीमन का मुद्दा भी उठा, क्योंकि पंचायत जमीनों के मामले में कुछ भी निर्णय नहीं ले पाती है। इससे कई बार यहां विवाद की स्थिति भी बनी है। वहीं जनजाति बहुल उदयपुर ग्रामीण विधानसभा सीट 1977 में परिसीमन के बाद बनी। बस यहां गांव में कई पंचायतें हैं, लेकिन जमीन यूआईटी की है। यानी पंचायत के पास कोई अधिकार नहीं है। पंचायतों की पैराफेरी की समस्या है, यही यहां चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है।

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