Thursday, November 21, 2024

Navratri 2023: कोटा का देवी मंदिर 700 साल से ज्यादा पुराना, बूंदी के राजकुमार ने किया था मंदिर का निर्माण

जयपुर। देशभर में त्योहारी सीजन की शुरुआत नवरात्र के पहले दिन से हो गई है। पहले दिन माँ दुर्गा के पहली रूप की पूजा की जाती हैं जिसे शैलपुत्री के नाम से जाना जाता हैं। नवरात्र के शुभ अवसर पर हम आपको कोटा के 700 साल पुराना माँ काली के मंदिर के बारे में कुछ रोचक जानकारी देने जा रहे है। बता दें कि इस मंदिर का निर्माण सन 1264 में बूंदी के राजकुमार जेतसिंह ने करवाया था।

इतिहास को अपने में संजोए हुए

माँ दुर्गा का नौ दिवसीय त्यौहार नवरात्र की शुभारंभ आज (रविवार) से हो गई है। बता दें कि शारदीय नवरात्री में भक्त पूरे नौ दिन तक माता की पूजा के साथ पूरे श्रद्धा भक्ति के साथ आराधना करते है। इस नौ दिनों तक रात्री में माँ का जागरण भी किया जाता हैं। बता दें कि कोटा में ऐसे कई मंदिर हैं जो इतिहास के दृष्टिकोण से भी प्रचलित है. जिसमे कोटा का माँ आशापुरा का मंदिर हैं जो अपने अंदर इतिहास को संजोए हुए हैं. यह मंदिर कोटा के दशहरा ग्राउंड के पास ही स्थित है साथ में इस मंदिर की अपनी खास महिमा भी हैं।

मंदिर पुजारी के अनुसार

माँ आशापुरा मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर करीब 700 साल पुराना है और मंदिर की महिमा भी अपरम्पार है. पुजारी ने बताया कि बूंदी के महराजा को उस दौरान प्रजा ने कहा था कि महराज आपके महल में तो दो-दो मंदिर है लेकिन हमप्रजा पूजा के लिए कहां जाए. साथ में पुजारी बताते हैं कि इस कथन को सुनकर बूंदी के महराज ने बूंदी दरबार में माँ आशापुरा का मंदिर बनवाया था।

मातारानी ने सपने में दर्शन दिए

बता दें कि इस मंदिर का निर्माण आज से 700 साल पहले यानी सन 1264 में बूंदी के राजा जेतसिंह द्वारा हुआ था। मंदिर निर्माण होने के पीछे बहुत रोचक किस्सा है। माना जाता है कि लखनऊ दरबार के राजा लाखन सिंह को माँ काली ने सपने में दर्शन दिए थे, जिसके बाद उन्होंने गुजरत में माँ आशापुरा मंदिर की निर्माण करवाई और उसी मंदिर के रूप का प्रतिबिम्ब कोटा के माँ आशापुरा मंदिर में भी लाया गया।

मेले की शुरुआत माँ की पूजा से

बता दें कि कोटा में मेले की शुभारंभ माँ आशापुरा मंदिर में पूजा अर्चना के साथ होती है। ऐसे में बताया जाता है कि मंदिर में पूजा-पाठ के बाद ही अगला कार्यक्रम शुरू होता है। हर वर्ष पूर्व शाही परिवार यहां मंदिर में आकर पूरे विधि-विधान के साथ माँ आशापुरा की आराधना करते हैं। वहीं दूसरी तरफ मान्यता है कि आशापुरा मां अशोक वृक्ष से प्रकट हुई थी, जिस वजह से मंदिर का नाम आशापुरा पड़ा। माना जाता हैं कि अगर अष्टमी वाले दिन मां की दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं कि हर आशा पूरी हो जाती हैं.

Ad Image
Latest news
Related news