Thursday, September 19, 2024

Navratri Special : तीन दिन तक नवरात्र में पानी से अखंड ज्योत जलती है, आपने देखा ?

जयपुर। राजस्थान के कोटा जिले में कोटसुवां गांव स्थित मां चामुंडा माता का मंदिर भक्तों की आस्था का बड़ा केन्द्र माना जाता है। इस मंदिर कि खास बात है कि यहां नवरात्र में तीन दिन तक पानी से अखंड ज्योत जलाई जाती है। बता दें कि मंदिर के पुजारी और आस पास के लोगों का मानना है कि माता का यह मंदिर लगभग नौ सौ साल पुराना है। वहीं मंदिर समिति ने बताया कि मंदिर में नवरात्री के दौरान अधिक संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। नवरात्र को लेकर सुबह चार बजे से भक्तों की आवाजाही शुरू हो जाती है, इसके बाद रात तक भक्त माँ का एक झलक पाने के लिए पंक्ति में लगे रहते है।

मंदिर से जुड़ा किस्सा

आपको बता दें कि गांव के कुछ वरिष्ठ ने बताया कि नवरात्र में कई सालों से माता का जस गीत गाया जाता है, जिसके माध्यम से माता की स्थापना के बारे में विस्तार से बताया जाता है। उन्होंने बताया कि मंदिर स्थापना तब हुई जब सन 1169 में कोटसुवां गांव में चम्बल नदी के दूसरी ओर एक दिव्य कन्या ने कालू कीर नामक नाविक को बुलाया और उसे नाव से पार करवाने के लिए कहा। जहां दिव्य कन्या ने उसे इन्द्रासन से आने की बात कही। साथ ही वरिष्ठ ने बताया कि इस बीच नाविक के मन में पाप आ गया। जिसके बाद दिव्य कन्या ने उसे नाव में ही चिपका दिया। इसकी ख़बर जब गांववासी को हुई तो वह मौके पर एकत्रित हुए, उसके बाद दिव्य कन्या ने अपना परिचय बताते हुए कहा कि 14 साल बाद यह नाविक आपलोगों को सही सलामत वापस मिलेगा। कन्या ने कहा कि आपलोग मंदिर बनवाइए, इसके बाद कन्या ने जैसा कहा था ठीक वैसा ही हुआ। साथ ही वरिष्ठ ने बताया कि उस समय के आखाराम पटेल ने माता का मन्दिर बनवाया और इसके बाद से माता रानी की पूजा-अर्चना उसी कालू कीर की पीढ़ी के लोग करते आ रहे हैं।

पानी से जलाए जाते हैं दीपक

माता के इस मंदिर में नवरात्र की पंचमी, षष्ठी और सप्तमी तक पानी से अखंड ज्योत जलाई जाती है। वहीं मानना है कि प्राचीन परंपरा के अनुसार इस मंदिर में नवरात्र के प्रथम दिन भोपे के शरीर पर माता विरजमान होती हैं। मंदिर पुजारी ने बताया कि इसके बाद भोपे को ढोल-नगाड़ों के साथ चंबल नदी ले जाया जाता है, इस दौरान नदी के बीचों-बीच से दो घड़े में पानी भरकर लाया जाता है, जिस पानी के घड़े को मंदिर में रखा जाता है। अब यहीं से भोपा को पवित्र किया जाता है। बता दें कि नवरात्र के दौरान माता का भोपा निराहार रहकर मंदिर परिसर में ध्यान में मगन रहता है।

दूध के सहारे नौ दिन व्यतीत

मंदिर कमेटी ने बताया कि माता का भोपा नवरात्री के दौरान रोजाना सिर्फ एक गिलास दूध के सहारे ही रहता है। वहीं उन्होंने बताया कि पंचमी की शाम को महाआरती के बाद भोपा के शरीर में माता का आगमन होता है। फिर घड़े वाली पानी को माता को दिया जाता है, उसके बाद पानी को ज्योत में डाला जाता है और फिर उसके बाद पानी से माता का दीपक जलाया जाता है। यह सिलसिला सप्तमी तक चलता है। यह चमत्कार को हजारों श्रद्धालु सामने से देखते है।

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