जयपुर। पूरा देश आज यानी 21 फरवरी को विश्व मातृभाषा दिवस मना रहा है। ऐसे में राजस्थान से जुड़े कुछ किस्से हम आपको बताने जा रहे है। तो आइए जानते है, विस्तृत से। राजस्थान की मातृभाषा को राजस्थान में मायड़ कहा जाता है। प्रदेश की महिलाओं की बात करें तो दिन प्रतिदिन इस मायड़ भाषा में रूचि अधिक दिख रही है। जानकारी के लिए बता दें कि महिलाएं इस भाषा में तमाम डिग्रीया भी ले रही है। कई महिला इस भाषा में पीएचडी तो कई किताबें तक लिख रही हैं।
राज्य के चार स्कूलों में राजस्थानी भाषा
बता दें कि देश की आजादी के समय से ही राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने की बात चल रही है। देश में कई सरकारें आई और कई सरकारें गई। इस दौरान प्रदेश के कई राजनेता से लेकर साहित्यकार और लेखक तक इस मांग को लेकर लड़ते रहे लेकिन आज भी इस भाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिल पाई है। वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की महिलाओं ने मायड़ को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए पूरा कमान अपने हाथो में ले लिया है। महिला शसक्तीकरण के तौर पर प्रदेश की महिलाएं आगे बढ़ कर प्रचार-प्रसार कर रही है। राज्य के चार स्कूलों में अभी राजस्थानी भाषा के लिए अलग सब्जेक्ट पढ़ाए जा रहे है। महिलाएं कई डिग्री भी मायड़ भाषा में ले रही हैं।
संवैधानिक मान्यता को लेकर आंदोलन
लक्ष्मी भाटी एक महिला है, जो जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय से राजस्थानी में पीएचडी कर रखी हैं। उन्होंने अपनी पहली किताब में विषय राजस्थानी भाषा के लिए आंदोलन रखा है। बता दें कि उनके पीएचडी का यह टॉपिक चुनने के पीछे भी मकसद मायड़ भाषा की प्राथमिकता को आगे बढ़ाना और युवा पीढ़ी को मायड़ भाषा से कनेक्ट करना है। इस भाषा को मान्यता दिलाने के लिए वह समिति में काफी सक्रिय दिखती है। उनका मानना है कि राजस्थानी संस्कृति को कायम रखने के लिए मायड़ को जानना जरुरी है।
कई और महिला है आंदोलनकारी
इसी तरह पाली की एक महिला भानुमती का भी मानना है कि राजस्थानी साहित्य अपने आप में समृद्ध है। इसलिए इन्होनें अपने किताबों में कहानी भी मायड़ भाषा में ही लिखी, ताकि लोगों को मायड़ भाषा में रूचि बढ़ें। इसके जरिए वे राजस्थानी आंदोलन को भी बढ़ा रहा है, जिसे मायड़ को संवैधानिक मान्यता मिल सके।
कई लेखन को किया राजस्थानी में अनुवाद
राजस्थानी में एक दर्जन से ज्यादा उपन्यास, काव्य संग्रह जोधपुर निवासी बसंती पंवार लिख चुके हैं। कई पुस्तकों का अनुवाद और संपादन राजस्थानी भाषा में किया गया है। हिंदी से राजस्थानी शब्द कोश और उपनिषद का राजस्थानी में अनुवाद भी किया गया है। बता दें कि पंवार न केवल राजस्थानी लेखन में एक्टिव है। वे महिला लेखकों को राजस्थानी साहित्य लेखन के लिए हमेशा प्रेरित भी करती रहती है।