Thursday, November 21, 2024

Rajasthan News : राजस्थान में था कुंवारों का गांव, जहां रिश्ते नहीं होते लेकिन अब स्थिति कुछ और

जयपुर: सुनने में थोड़ा अजीब लगेगा। राजस्थान में एक ऐसा गांव भी है जहां आज भी लड़के-लड़कियों के रिश्ते नहीं होते है। बात है प्रदेश के बहरोड़ की जब 2006-07 में सरिस्का से गांवों को विस्थापित किया जा रहा था। तब किसी ने सोचा तक नहीं होगा कि जल्द ही सामज में बड़ा बदलाव हो जाएगा। बदलाव में सामाजिक और आर्थिक बदलाव देखने को मिला। आज हम बात करने वाले है, राजस्थान के एक गांव को लेकर, जो कभी हुआ करता था कुंवारों का गांव, जहां लड़के-लड़कियों के रिश्ते तक नहीं होते थे। अधिकतर लोग कुंवारे ही थे। 5 में से 3 की ही शादी होती थी। (Rajasthan News) हालात इतनी बुरी थी कि गांव के 40 फीसदी बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। लेकिन अब स्थिति में बदलाव देखने को मिला है। अब यहां 5 प्रतिशत भी कुंवारे नहीं हैं। अब हालात यह है कि यहां का हर बच्चा स्कूल जाने लगा है।

एक समय पर देव नगर गांव था कुंवारों का गांव

बता दें कि राजस्थान के सरिस्का से विस्थापित होकर करीब 130 km दूर बहरोड़ के पास देव नगर एक गांव है। जहां पहले हालात इतने ख़राब थे कि यहां रिश्ते नहीं हो पाते थे। गांव के अधिकांश लोग कुंवारे रहते थे। बच्चे स्कूल तक नहीं जाते थे। हालांकि धीरे-धीरे परिस्थितियों में बदलाव आया। अब यहां के हालात में कुछ ऐसा हुआ कि सभी बच्चे स्कूल तक जाने लगे। शादियां भी होने लगी, अब यहां 5 प्रतिशत भी कुंवारे नहीं हैं। देव नगर में बसे लगों की हालात बदल चुके हैं। पहले यहां के लोगों को शादियां करने में दिक्क्त आती थी, वहां अब पढ़ें-लिखे जीवन साथी मिल रहे हैं।

40 फीसदी बच्चों को ही मिल पाती थी शिक्षा

आज हम इस जगह को देव नगर कहते है। पहले इसे सरिस्का के बघाणी, हरिपुरा, कांकवाड़ी व उमरी के नाम से लोग जानते थे। पहले यहां 10 में से 6 लोगों को ही जीवन साथी मिल पाता था। उस समय 40 फीसदी बच्चे ही स्कूल शिक्षा लेने पहुंच पाते थे। जब से यह गांव विस्थापित होकर रूंध में बसा है, तब से यहां के लोगों की स्थिति बदल गई है। अब यहां 5 फीसदी भी लोग कुंवारे नहीं हैं। अब तो हर बच्चे की पीठ पर स्कूल बैग और हाथ में किताब दिखता है। समय के साथ हुए बदलाव में मौजूदा समय में यहां पांचवी तक स्कूल है। इस गांव के करीब 150 से ज्यादा लोगों की शादी हो गई है। सभी को शिक्षित लाइफ पार्टनर भी मिल रहे हैं।

पशुपालन था जीवनयापन करने का साधन

देव नगर कुंवारों का गांव कहे जाने के पीछे का कारण जब स्थानीय लोगों ने बताया तो पता चला इस गांव को लोग कुंवारों का गांव क्यों कहते थे। गांव के गुर्जर परिवार का एक बुजुर्ग ने इस संबंध में बताया कि इस गांव में जीवनयापन करने का एक ही साधन था, वो था पशुपालन करना। इस वजह से लोग अपने बच्चों को पशु चराने के लिए जंगलों में भेज दिया करते थे. इस कारण से बच्चे कभी स्कूल नहीं गए और नहीं शिक्षा से जुड़ें। जिस वजह से आज इस गांव की स्थिति यह है कि यहां 30 साल से अधिक उम्र के लोग अनपढ़ हैं। इस संबंध में वहां के लोगों ने कहा कि इस गांव के लिए अनपढ़ और जंगलों में रहना एक अभिशाप रहा है। इस वजह से यहां लोग अपने बच्चों के रिश्ते करने के लिए नहीं आते थे। लेकिन अब हालात पहले से बेहतर है, अब अधिक रिश्ते होने लगे हैं।

Ad Image
Latest news
Related news