जयपुर। देश आज आजादी का जश्न मना रहा है। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ उस समय लोगों को इसकी सूचना देने माहोला राग एक मात्र सहारा था। वह भी गिने – चुने लोगों व शहरों तक ही सीमित था। आजादी तक रींगस स्वतंत्रता सैनानियों का आश्रय था। यहां से अनेक स्वतंत्रता सैनानी निकले। कई स्वतंत्रता सैनानियों का रींगस गुप्त अड्डा हुआ करता था। यहीं पर वे आजादी के लिए गुप्त बैठकों का आयोजन करते थे। आजादी के लिए रणनीति भी यहीं बनाई जाती थी।
नारों की वजह से नाम पड़ा आजाद चौक
रींगस में आजाद चौक का नाम भी वहां पर नारे लगने की वजह से पड़ा है। आजादी के साक्षी रहे शहर के वृद्धोवृद शिक्षाविद राम सिंह शेखावत का कहना है कि उस समय ‘हम बहुत छोटे-छोटे हुआ करते थे’। 2 दिन तक आजाद चौक में आजादी का जश्न मनाया गया। दो दिन लगातार ध्वजारोहण किया गया। इसके बाद यहां का नाम आजाद चौक रख दिया गया। इससे पहले इसका नाम कचहरी चौक था।
हवाई जहाजो से उड़ाए आजादी के पर्चें
गांव के ही स्व. सीताराम बडतला, महावीर बडतल्ला, सेडमल डाकवाला मदन लाल डाकवाला और कई अन्य लोग रामानन्द पाठशाला में पढाई करते थे। उस समय पढ़ाई भी काफी मुश्किल हुआ करती थी। हम लोग इधर – उधर घूमकर आनासागर में गायों को चरा रहे थे। उसी समय आसमान में हवाई जहाज गुजरा। उन्होंने हवाई जहाज से पर्चे नीचे डाल दिए। एक बार तो हम डर कर पेड़ों के नीचे छिप गए। बाद में उन पर्चे को देखा तो लिखा था आज से भारत आजाद। हमने वे पर्चे उठाए तथा घरों को निकल पड़े। रास्ते में जो भी मिलता उन्हें यह खबर पढ़कर सुनाते थे।