जयपुर। राजस्थान के कोटपूतली में 3 साल की चेतना 6 दिन तक बोरवेल में फंसी रही। हादसे के कई घंटे तक शरीर में हलचल भी थी, लेकिन बाहर निकलने के लंबे इंतजार और भूख-प्यास चेतना की मुश्किले बढ़ी। इस घटना के पीछे जितना जिम्मेदार चेतना के परिवार हैं, उससे ज्यादा लापरवाही रेस्क्यू टीम अधिकारियों की है, जिन्होंने 29 घंटे केवल देसी जुगाड़ के भरोसे बर्बाद कर दिए। देसी तरीके फेल होने के बाद प्लान ‘बी’ पर काम शुरू किया।
2 दिन बाद मौके पर पहुंचे कलेक्टर
राजस्थान का सबसे लंबा और कठिन रेस्क्यू ऑपरेशन का दावा करने वाली जिला कलेक्टर खुद 2 दिन बाद घटनास्थल पर पहुंचीं। इससे पहले 10 दिसंबर दौसा जिले में बोरवेल में गिरे 3 साल के मासूम आर्यन को बचाने में नाकामी की भी ऐसी ही वजहें थी। कोटपूतली के इस रेस्क्यू ऑपरेशन में क्या चुनौतियां और क्या लापरवाहियां रहीं? कोटपूतली के बड़ियाली की ढाणी की चेतना को 700 फीट गहरे बोरवेल में 150 फीट पर फंस गई थी।
अधिकारियों की लापरवाही
जब चेतना बोरवेल में गिरी तब वह केवल 15 फीट पर अटकी हुई थी। परिवार वालों ने रस्सी डालकर उसे निकालने का प्रयास किया लेकिन जबे सही उसने रस्सी पकड़ने के लिए हाथ ऊपर कर वह खिसक कर नीचे चली गई। चेतना फिसलकर 80 फीट गहराई तक चली गई।
बच्ची के बोरवेल गिरने पर दोपहर 2 बजे स्थानीय प्रशासन को इसकी सूचना दी गई, सूचना मिलने के आधे घंटे के बाद भी रेस्क्यू टीम मौके पर नहीं पहुंची। इस बीच स्थानीय लोगों ने देसी जुगाड़ करने बच्ची को निकालने का प्रयास किया। बच्ची तो नहीं निकली लेकिन बच्ची फिसलकर 150 फीट नीचे पहुंच गई।
पड़ताल में पाया गया कि बोरवेल में चेतना खेलते समय गिर गई थी। बोरवेल के अंदर नमी होने से मिट्टी चिकनी होने से अंदाजा लगाया कि देसी जुगाड़ से रेस्क्यू सफल होने के चांस कम है, जिससे इंसिडेंट कमांडर समझ नहीं पाए और प्लान बी पर काम करने लगे।
पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान टीमों और इंसिडेंट कमांडर का हायल लेवल कॉर्डिनेशन खराब रहा। 2 दिन तक तो जिला कलेक्टर मौके पर नहीं पहुंची। लंबे समय से आस लगाए बैठे लो चमत्कार के भरोसे बैठे रहे।