Teachers Day 2023: आज टीचर्स डे के मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देशभर के 75 शिक्षकों को राष्ट्रीय शिक्षक अवॉर्ड-2023 से सम्मानित किया। दिल्ली के विज्ञान भवन में हुए कार्यक्रम में सभी शिक्षकों को पुरस्कार में 50 हजार रुपए नकद, प्रशस्ति पत्र, शॉल, श्रीफल दिया गया। राज्य की दो अध्यापिकाओं को राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित किया गया। एक अलवर जिले की आशा सुमन और दूसरी जोधपुर में प्रिंसिपल डॉ. शीला आसोपा हैं। दोनों ही टीचर्स की कहानी प्रेरित करने वाली हैं। अलवर की आशा सुमन मूक-बधिर बच्चियों को सेल्फ डिफेंस के लिए ट्रेंड करती हैं। जोधपुर की शीला आसोपा के नाम 50 हजार स्टूडेंट्स को हाथ धोने का सही तरीका सिखाने का वर्ल्ड रिकॉर्ड है।
मूक-बधिर से रेप हुआ तो शुरू किया मिशन
आशा सुमन साल 2005 से बच्चों को बारहखड़ी और एबीसीडी (एल्फाबेट) सिखा रही हैं। 2014 में राजगढ़ के खरखड़ा गांव के सरकारी स्कूल के पास एक मूक-बधिर लड़की से खेत में रेप हो गया। इस घटना ने आशा को बेचैन कर दिया। उन्होंने तय किया कि वह मूक-बधिर बेटियों को आत्मरक्षा सिखाएंगी, ताकि किसी और बच्ची के साथ ऐसा न हो।
मन में संकल्प था, लेकिन क्या करेंगी, कैसे करेंगी, ये नहीं पता था। क्योंकि बच्चियों को सिखाने से पहले खुद ट्रेनिंग लेना जरूरी था। ऐसे में उन्होंने राजस्थान पुलिस अकादमी (जयपुर) और शिक्षा विभाग की ओर से होने वाली ट्रेनिंग में हिस्सा लिया। मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेने मुंबई तक पहुंच गईं।
अब तक इतनों को दे चुकी है ट्रेनिंग
साल 2015 में उन्होंने मूक-बधिर लड़कियों और स्कूली छात्राओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया। स्कूल-स्कूल जाकर स्पेशल सेशन लिए। इस काम में सेल्फ डिफेंस ट्रेनर गायत्री देवी ने उनका भरपूर साथ दिया। आशा उन्हें अपना गुरु मानती हैं। आशा अब लड़कियों को सेल्फ डिफेंस व मार्शल आर्ट (केरल) सिखाती हैं। अब तक 190 मूक बधिर लड़कियों, 6 हजार स्कूली छात्राओं, 2 हजार महिला टीचर्स और 246 पुरुष टीचर्स को वे सेल्फ डिफेंस में ट्रेंड कर चुकी हैं।
वह अलवर व जयपुर आकाशवाणी और पत्र-पत्रिकाओं के जरिए आत्मरक्षा के टिप्स देती हैं। स्कूल, कॉलेज, एनजीओ व महिला समितियों के जरिए ट्रेनिंग देती हैं। उन्होंने कहा- जो बेटी सुन-बोल नहीं सकती, उसे सेल्फ डिफेंस की बारीकियां सिखाना चुनौती है। उनका मकसद है कि हर बेटी सेल्फ डिफेंस सीखे ताकि विपरीत परिस्थिति में उसका इस्तेमाल कर सके।
स्कूल की इमारत, बच्चों की सोच बदल दी
जोधपुर के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल, बावड़ी की प्रिंसिपल डॉ. शीला आसोपा सरकारी स्कूल के बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैक बोर्ड तक सीमित नहीं रहीं। 5 साल की कड़ी मेहनत कर उन्होंने 35 मिनट की डिजिटल बुक तैयार कराई है। इसमें साइन लैंग्वेज से बच्चों को शब्द ज्ञान कराया जाता है। इस डिजिटल बुक में एनिमेटेड चित्रों के जरिए चैप्टर को समझाया गया है। इस बुक को अब राजस्थान की 10 हजार से ज्यादा निजी व सरकारी स्कूलों के 10 लाख से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे हैं। सरकारी स्कूल के बच्चों की लर्निंग स्किल बेहतर हुई है।
बच्चों को हाथ धोना सिखाया तो बना वर्ल्ड रिकॉर्ड
बावड़ी के सरकारी स्कूल में डॉ. शीला ने बच्चों को प्रैक्टिकली बेहतर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अच्छी बातें रटाई नहीं बल्कि बच्चों के जीवन का हिस्सा बना दिया। कोरोना में हाथ धोने का महत्व सामने आने के बाद डॉ. शीला ने इसे मिशन बना लिया। अपने स्कूल से हाथ धोने के अभियान की शुरुआत की। बच्चों को हाथ धोने के तरीके बताए। अब तक 50 हजार से ज्यादा बच्चों को हाथ धोना और इसका महत्व सिखा चुकी हैं।