जयपुर। भारत में वोट करने के बाद नीली रंग की स्याही लगा दी जाती है। जिसके दाग़ जल्दी मिटते नहीं है। शुरू में यह बैंगनी (पर्पल) रंग की नज़र आती है, लेकिन समय बीतने के साथ ही यह काली (ब्लैक) पड़ जाती है. इसे अमिट स्याही या इंडेलिबल इंक के नाम से जाना जाता है.स्याही लगाने का एक फ़ायदा तो यह है कि इससे जानकारी लग जाती है कि इस व्यक्ति ने मतदान कर दिया है. दूसरा फायदा यह कि वो व्यक्ति फिर से वोट नहीं कर सकता है।
कई देशों में लगाई जाती है स्याही
भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में वोट करने के बाद स्याही (इंक) से चिन्हित किया जाना जरुरी है. बता दें कि दुनिया के अधिकांश देशों में यह स्याही (इंक) भारत से ही जाती है.
कैसे काम करती है यह इंक?
चुनाव के दौरान बैंगनी रंग की इस स्याही को बाएं हाथ की तर्जनी यानी अगूठे के पास वाली फिंगर पर लगाया जाता है. चुनावी स्याही में 10 से 18 फीसदी मात्रा सिल्वर नाइट्रेट केमिकल की होती है.खास बात यह है कि पानी के संपर्क में आने के बाद इसका रंग ब्लैक हो जाता है. आप चाहे जितना भी पाउडर, साबुन या तेल से मिटाने की कोशिश करे, ये छूटेगा नहीं. इसका दाग कम-से-कम 72 घंटे तक त्वचा से मिटाया नहीं जा सकता.
कब से इसका इस्तेमाल हो रहा है?
चुनाव आयोग के मुताबिक़ 2014 के आम चुनाव के दौरान 21 लाख बॉटल स्याही का ऑर्डर दिया गया था, जो 2019 के आम चुनावों में बढ़कर 26 लाख तक पहुंच गया था. इसका इस्तेमाल 1960 के दशक (Decade) से हो रहा है.
कहां लगाई जाती है स्याही?
चुनाव आयोग की ओर से मार्च 2015 में जारी हुए एक आदेश के मुताबिक़ स्याही बाएं हाथ की तर्जनी उंगली के नाखून के आख़िरी सिरे से प्रथम जोड़ के नीचे तक ब्रश से लगाई जाएगी. जिस ब्रश से यह स्याही लगाई जाती है, उसका निर्माण भी मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड ही करता है.मतदान अधिकारी जो ईवीएम कंट्रोल यूनिट के प्रभारी होते हैं, उनका काम यह सुनिश्चित करना होता है कि कंट्रोल बैलेट का बटन दबाने से पहले मतदाता की उंगली पर स्याही का निशान पूरी तरह से लगा हो.