जयपुर। राजस्थान के उदयपुर में स्थित मेवाड़ राजवंश इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। इसका कारण है राजवंश की 71वीं राजगद्दी पर होने वाला विवाद, जिसमें महाराणा प्रताप के वंशज लक्ष्यराज सिंह और उनके चचेरे भाई विश्वराज सिंह के बीच हो रहा है।
विश्वराज सिंह का राजतिलक
यह विवाद तब और गहरा गया जब सोमवार को राजतिलक के बाद विश्वराज सिंह को ताप पहनाया गया और मेवाड़ के 71वें महाराणा घोषित किया गया। इस विवाद की शुरुआत तब हुई जब सोमवार को विश्वराज सिंह का राजतिलक हुआ, लेकिन जैसे ही उनका राजतिलक हुआ, मेवाड़ के राजघराने में बवाल मच गया। लक्ष्यराज सिंह के पिता अरविंद सिंह का कहना है कि उनका बेटा राजगद्दी का असली हकदार है। और तो और अरविंद सिंह का यह भी आरोप है कि विश्वराज सिंह को राजगद्दी देने का फैसला बिना परिवार की सहमति के लिया गया है।
धूणी माता के दर्शन नहीं करने दिए
इतना ही नहीं राजतिलक के बाद जब विश्वराज सिंह उदयपुर सिटी पैलेस स्थित धूणी माता के दर्शन करने गए, तो वहां उन्हें दर्शन नहीं करन दिए। मंदिर के गेट बंद कर दिया गया। जिससे विवाद और बढ़ गया। अब यह मामला अब परिवार की प्रतिष्ठा से कहीं ज्यादा हो गया है। इस विवाद की जड़ें 1955 में हैं। जब भगवत सिंह मेवाड़ के महाराणा हुआ करते थे। भगवत सिंह ने उस समय से ही मेवाड़ की संपत्तियों को बेचने और लीज पर देने शुरू कर दिया था जो उनके बड़े बेटे महेंद्र सिंह को बिल्कुल भी पसंद नहीं था।
पिता के खिलाफ दर्ज कराई FIR
महेंद्र सिंह ने अपने पिता के खिलाफ FIR दर्ज कराई। साथ ही संपत्तियों को हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत बांटने की मांग की। इसके बाद 1984 में जब भगवत सिंह ने अपनी वसीयत बनाई तो उन्होंने छोटे बेटे अरविंद सिंह को संपत्तियों का एक्जीक्यूटिव बना दिया। वहीं महेंद्र सिंह को संपत्ति और ट्रस्ट से बाहर कर दिया। इस फैसले के बाद से ही मेवाड़ राजघराने में अंदरूनी विवाद गहराया है। अब जब महेंद्र सिंह के बेटे, विश्वराज सिंह का राजतिलक हुआ, तो अरविंद सिंह और उनका परिवार विरोध में उतर पड़ा।
लक्ष्यराज ने जताया राजगद्दी पर अपना हक
अरविंद सिंह का कहना है कि मेवाड़ राजघराना एक ट्रस्ट के माध्यम से चलता है, जिसका संचालन उनके पिता ने उन्हें दिया था। ऐसे में उनके और उनके बेटे लक्ष्यराज सिंह का राजगद्दी पर सबसे बड़ा हक है।