Friday, November 22, 2024

Rajasthan Election 2023: उदयपुर के फेर में फंसी बीजेपी-कांग्रेस, इस बार कौन देगा किसको मात,तीन पार्टियों में होगा मुकाबला

जयपुर: राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में हर एक विधानसभा सीट को लेकर जीत-हार का गुणा भाग शुरु हो गया है। राजस्थान की राजनीति में सबसे प्रमुख माने जाने वाले मेवाड़ की 28 सीटों की अगर बात करें, तो यह सभी की नजरों में है। मेवाड़ की उदयपुर शहर विधानसभा सबसे महत्तवपूर्ण सीटों में से एक माना जाता है।

इस सीट पर है भाजपा का कब्जा

उदयपुर शहर विधानसभा सीट पर भाजपा का कई वर्षो तक एक छत्र राज चलता आया है, वहीं ऐसा पहली बार है जब दोनों ही मुख्य पार्टियों के पास कोई चेहरा नहीं है। कांग्रेस तो कमजोर थी ही लेकिन गुलाब चंद कटारिया के जाने के बाद बीजेपी के पास भी कोई मजबूत कैंडिडेट नहीं बचा है। उदयपुर विधानसभा सीट राजस्थान की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी। इस बार उदयपुर विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है। हम आपके लिये लाये हैं विस्तृत कवरेज, जिसमें आप विधानसभा सीट पर प्रत्याशियों की सूची, पार्टी प्रचार व अन्य खबरों के साथ-साथ जान सकेंगे यहां के विजेता, उपविजेता, वोट शेयर और बहुत कुछ। आइये जानते हैं इस सीट के बारे में…

उदयपुर विधानसभा सीट राजस्थान के उदयपुर जिले में आती है। उदयपुर शहर विधानसभा के सीट पर हार जीत के इतिहास की बात करें तो यहां पिछले 4 विधानसभा चुनाव से बीजेपी का कब्जा रहा है। वर्ष 2003 से 2018 तक वर्तमान में असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया यहां से विधायक थे।
2018 में उदयपुर में कुल 47 प्रतिशत वोट पड़े और 2018 में भारतीय जनता पार्टी से गुलाबचंद कटारिया ने कांग्रेस के डॉ गिरिजा व्यास को 9307 वोटों के मार्जिन से हराया था। इससे पहले कांग्रेस के त्रिलोक पूर्बिया और पूर्व केंद्रीय मंत्री गिरिजा व्यास विधायक रही। इन दोनों से पहले एक दो बार गुलाब चंद कटारिया विधायक रहे। यह कह सकते हैं कि उदयपुर शहर विधानसभा पर ज्यादातर बीजेपी का ही राज रहा।

दोनों पार्टियों के सामने चेहरे की कमी

उदयपुर विधानसभा सीट में पिछले लंबे समय से कांग्रेस से कोई मजबूत नेता सामने नहीं आया। यही वजह है की कांग्रेस ने पिछले चुनाव में वरिष्ठ नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री गिरिजा व्यास को गुलाब चंद कटारिया के सामने उतारा था, लेकिन कटारिया के सामने गिरिजा व्यास को हार का सामना करना पड़ा। यहीं स्थिति अब बीजेपी के सामने भी खड़ी हो गई है। गुलाब चंद कटारिया के असम राज्यपाल बनने के बाद बीजेपी के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है। ऐसे में बीजेपी इस सीट पर अपना पुराना वर्चस्व बनाए रखने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। वहीं गुलाब चंद कटारिया के जाने के बाद कांग्रेस इस मौके का फायदा उठा अपना परचम लहराने की तैयारी में जुटी हुई है।

इस सीट का जातिगत समीकरण

अगर बात करें इस सीट के जातिगत समीकरण की तो उदयपुर जिले की तीन सामान्य सीटों में से सबसे हॉट उदयपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से आठ बार ब्राह्मण व चार बार जैन प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं। शहर में सर्वाधिक मतदाता ब्राहाण करीब 45 हजार, जैन 42 हजार और मुस्लिम 35 हजार हैं। वर्ष 1952 से 2008 तक हुए विधानसभा चुनावों में मेवाड़ की सामान्य वर्ग की सीटों पर राजपूत और ब्राह्मण प्रत्याशियों का दबदबा रहा है। उदयपुर शहर, बड़ीसादड़ी, कुंभलगढ़ व बेगूं विधानसभा सीटों पर जैन समाज के उम्मीदवारों ने भी जीत हासिल की। शहर विधानसभा क्षेत्र से 1952 से 67 तक लगातार चार चुनाव ब्राहाण प्रत्याशी के रूप में कांग्रेस के मोहनलाल सुखाडिय़ा, 1972 में भानु कुमार शास्त्री, 1985 में डॉ. गिरिजा व्यास तथा 1990 और 93 में शिव किशोर सनाढ्य निर्वाचित हुए थे। जैन उम्मीदवार के रूप में भाजपा के गुलाबचंद कटारिया 1977, 1980, 2003 और 2008 में जीते थे। 1998 में ब्राह्मण-जैन एकाधिकार में बदलाव आया जब कांग्रेस के ओबीसी उम्मीदवार त्रिलोक पूर्बिया ने भाजपा के ब्राह्मण प्रत्याशी मांगीलाल जोशी को हराया था।

यहां का मुख्य मुद्दा

बात करें यहां के मुद्दे की तो झीलों के शहर उदयपुर में पर्यटन और झीलों से जुड़े बड़े मुद्दे है। उदयपुर का सबसे बड़ा मुद्दा ट्रैफिक व्यवस्था है। पर्यटन शहर होने की वजह से सीजन में यहां पर बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। ऐसे में शहर में चारो तरफ जाम की स्थिति बन जाती है। यह सिर्फ सीजन में नहीं अन्य दिनों में भी लोगों को कई बार जाम का सामना करना पड़ता है।

अगर दूसरे मुद्दे की बात करें झीलों से जुड़ा हुआ है। उदयपुर शहर झीलों के कारण पूरी दुनिया में मशहूर है। ऐसे में झील से जुड़ा मुद्दा भी बड़ा है,मुद्दा यह है कि झीलों में अभी भी सीवरेज का पानी जा रहा है। जिससे गंदगी और जल प्रदूषण फैल रहा है, बड़ी बात यह है कि अभी दोनों ही पार्टियां में इन मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। सभी चुनाव में जीत के लिए जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं।

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