जयपुर: राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने में महज चंद महीने शेष है। ऐसे में राजस्थान की मावली सीट का समीकरण क्या है उसे आपको समझाते हैं। मावली विधानसभा सीट राजस्थान की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है, जहां से 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी।
इस बार मावली विधानसभा सीट के परिणाम किस पार्टी के पक्ष में होंगे, यह जनता को तय करना है। हम आपके लिये लाये हैं विस्तृत कवरेज, जिसमें आप विधानसभा सीट पर प्रत्याशियों की सूची, पार्टी प्रचार व अन्य खबरों के साथ-साथ जान सकेंगे यहां के विजेता, उपविजेता, वोट शेयर और बहुत कुछ।
कांग्रेस-भाजपा में बराबरी का मुकाबला
बार करें इस विधानसभा सीट की तो आजादी के बाद से ही उदयपुर जिले की मावली विधानसभा का राजस्थान की राजनीति में अहम स्थान रहा है। इस सीट से पहले विधायक जर्नादन राय नागर से लेकर निरजंन नाथ आचार्य हनुमान प्रसाद प्रभाकर और शांतिलाल चपलोत जैसे दिग्गजों ने मावली का विधायक के रूप में प्रतिनिधित्व किया है। अगर इस सीट पर किस पार्टी का पकड़ है उसपर बात करें तो यहां कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस का राज रहा है। फिलहाल पिछले 10 साल से यहां बीजेपी है। अभी मौजूद विधायक बीजेपी के धर्मनारायण जोशी हैं। वो पिछली बार रिकॉर्ड तोड़ वोट से जीते थे। वहीं इनके सामने कांग्रेस के सबसे बड़े नेता पुष्करलाल डांगी थे। वे दो बार चुनाव हार चुके हैं और अभी प्रधान है। ऐसी स्थिति में उनका विरोधी खेमा टिकट बदलकर जगदीशराज श्रीमाली, जीतसिंह चुंडावत या गोवर्धन सिंह चौहान को देने की मांग कर सकता है। वहीं 2013 में भी बीजेपी के दली चंद डांगी बीजेपी के उम्मीदवार थे। इससे पहले 2008 में कांग्रेस के पुष्करलाल डांगी, 2003 बीजेपी से शांतिलाल चपलोत, 1998 में कांग्रेस के शिवसिंह माले थे। यानी देखा जाए तो राजस्थान सरकार की तरह यहां भी पार्टी विधायक बदलते रहे है।
मावली विधानसभा क्षेत्र प्रदेश में हर चुनाव में सुर्खियों में रहा है। यहां से निर्वाचित दो-दो विधायक विधानसभा के अध्यक्ष व प्रदेश में मंत्री रहे हैं। एक बार निर्दलीय प्रत्याशी निरंजननाथ आचार्य ने सत्ताधारी दल कांग्रेस के प्रत्याशी की जमानत तक जब्त करवाकर जीत हासिल की थी। साल 2018 में संभाग में सर्वाधिक 26978 वोटों से चुनाव जीते विधायक धर्मनारायण जोशी इस बार भी बीजेपी की ओर से टिकट के प्रमुख दावेदार माने जा रहें है।
क्या कहता है जातिगत समीकरण
मावली विधानसभा क्षेत्र संख्या 154 में उदयपुर जिले की सामान्य सीट है। 2011 की जनगणना के अनुसार मावली विधानसभा की जनसंख्या 3,20,997 है। जिसमे 86.89 फीसदी हिस्सा ग्रामीण व 13.11 फीसदी हिस्सा शहरी है। जबकि कुल आबादी का 23.11 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 10.23 प्रतिशत अनुसूचित जाति है। आदिवासी आबादी के बाद इस सीट पर पाटीदार और ब्राह्मण समाज का भी अच्छा खासा दखल रहा है।
सर्वाधिक 5 बार ब्राह्मण
1957 में गठित हुए मावली विधानसभा क्षेत्र से अब तक छह बार कांग्रेस और पांच बार भाजपा प्रत्याशी चुनाव जीत चुके हैं। पांच बार कांग्रेस के ब्राह्मण प्रत्याशियों को जीत हासिल हुई।तीन बार जैन, एक बार राजपूत और एक चुनाव ओबीसी उम्मीदवार जीता था। 1957 में कांग्रेस के पंडित जनार्दन राय नागर, 1967 और 72 में कांग्रेस के निरंजन नाथ आचार्य और 1980 व 85 में कांग्रेस के हनुमान प्रसाद प्रभाकर विधायक चुने गए। जैन प्रत्याशी के रूप में भाजपा के शांति लाल चपलोत 1990, 1993 और 2003 में चुनाव जीते थे।राजपूत उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस के शिव सिंह चौहान ने 1998 में, जनता पार्टी के नरेंद्र पाल सिंह ने 1977 में चुनाव जीते थे। 2008 में मावली से पहली बार कांग्रेस के ओबीसी प्रत्याशी पुष्कर डांगी चुनाव जीते थे। मावली विधानसभा क्षेत्र में डांगी, पटेल और गुर्जर समाज के वर्चस्व को देखते हुए 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने पुष्कर डांगी को फिर से प्रत्याशी बनाया है। भाजपा ने उसके खिलाफ दली चंद डांगी को टिकट दिया है।
क्या है मुख्य मुद्दा
हर विधानसभा चुनाव के अपने अलग-अलग मुद्दे होते हैं। अगर पानी,बिजली और सड़क की समस्या को छोड़ दिया जाए, तो उस प्रमुख मुद्दे की मांग चुनाव से पहले ही उठने लगती है। चुनावी घोषणा पत्र में भी उसी मांग को पूरा करने के लिए दोहराया जाता है। फिर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो जाती है। ऐसा ही हाल उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर मावली विधानसभा की है। यह हर साल राजस्थान में किसी ना किसी कारण चर्चाओं में अक्सर रहती है। खास बात यह है कि यह विधानसभा है तो ग्रामीण क्षेत्र लेकिन यहां से राजस्थान के कई दिग्गज नेता निकले हैं। इसमें मावली के पहले विधायक जर्नादन राय नागर, निरजंन नाथ आचार्य, हनुमान प्रसाद प्रभाकर और शांतिलाल चपलोत हैं। खास बात यह है कि इस विधानसभा का एक ही सबसे बड़ा मुद्दा है, जो कई सालों से बना हुआ है।
तो कह सकते है की इस बार भी मावली का एक बड़ा चुनावी मुद्दा बागोलिया बांध ररहने वाला है, जो कि अभी तक जस का तस है। वहीं फतहनगर में 87.2 बीघा जमीन के पट्टे का मामला था। जिसे विधायक जोशी के विधानसभा में इस मामले को उठाने और बीजेपी बोर्ड द्वारा पट्टे जारी किए जाने से बीजेपी को इसका लाभ हुआ है। वहीं कांग्रेस भी इसका श्रेय लेने में पीछे नहीं रही। कुल मिलाकर लगता है कि यहां चुनाव मुद्दों पर कम व प्रत्याशियों की छवि पर अधिक केंद्रित होगा।