जयपुर। ऐतिहासिक किले-हवेलियों और रेगिस्तान के लिए मशहूर राजस्थान अब वाइल्डलाइफ प्रेमियों के लिए फेवरेट ट्रेवल डेस्टिनेशन बन गया है। यहां दुर्लभ पक्षियों से लेकर बाघ और वन्यजीवों की कई प्रजातियां को आसानी से देख सकते हैं। कई तरह के दुर्लभ जानवर और पक्षियों को देखने के लिए दूर-दूर पर्यटक यहां आते हैं। ईको-टूरिज्म को […]
जयपुर। ऐतिहासिक किले-हवेलियों और रेगिस्तान के लिए मशहूर राजस्थान अब वाइल्डलाइफ प्रेमियों के लिए फेवरेट ट्रेवल डेस्टिनेशन बन गया है। यहां दुर्लभ पक्षियों से लेकर बाघ और वन्यजीवों की कई प्रजातियां को आसानी से देख सकते हैं। कई तरह के दुर्लभ जानवर और पक्षियों को देखने के लिए दूर-दूर पर्यटक यहां आते हैं।
यही कारण है कि प्रदेश के जंगलों में देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या लगातार इजाफा हो रहा है। दरअसल, ईको-टूरिज्म को बढ़ावा देने की वजह से सरिस्का, रणथंभौर, नाहरगढ़ जैविक उद्यान, झालाना, केवलादेव अभयारण्य, सांभर झील और ताल छापर जैसे स्थान नए पर्यटन हब बनकर विकसित हो रहे हैं। खासतौर पर बाघ और बघेरे देखने की दीवानगी लोगों में ज्यादा हैं। इससे रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं। होटल, गाइड और रिसॉर्ट्स के अतिरिक्त स्थानीय हस्तशिल्प और पारंपरिक व्यंजनों की मंगा भी तेजी से बढ़ रही है।
वन विभाग की माने तो 30 लाख से ज्यादा पर्यटक वन्यजीवों को देखने और जंगल घूमने आते हैं। राजस्थान के जंगलों में वाइल्डलाइफ सफारी का क्रेज भी काफी हैं। खासकर सरिस्का, झालाना और रणथंभौर में होने वाली सफारी में सीजन (अक्टूबर-जनवरी) के दौरान पर्यटकों की अच्छी-खासी भीड़ रहती है। बड़ी संख्या में पर्यटकों के होने की वहजह से कई पर्यटकों को निराश होकर लौटना पड़ता है। ऑनलाइन व ऑफलाइन टिकट बुक की जाती है, जिस वजह से सीटे फुल हो जाती है। राजस्थान की झीलें और अभयारण्य प्रवासी पक्षियों के लिए स्वर्ग बन गए हैं।
हर साल मानसागर, सांभर झील, पिछोला झील, आना सागर, केवलादेव, ताल छापर, खींचन और जोड़ बीड़ में हजारों माइग्रेटरी बर्ड्स यहां आते हैं। ये पक्षी सितंबर-नवंबर में पहुंचते हैं और फरवरी के अंत तक अपने देश वापस लौट जाते हैं। इनका दीदार करने देश-विदेश से पक्षी प्रेमी और फोटोग्राफर राजस्थान आते हैं। खास बात यह है कि खरमोर और गोडावन संरक्षण के प्रयासों ने भी राजस्थान को वाइल्डलाइफ को मैप पर मजबूत पहचान दी है।