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Rajasthan Election 2023 : पांच सालों में राज्य की सियासत में क्या बदलाव आए, जानें गहलोत कब-कब संकट में फंसे?

जयपुर: राजस्थान में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। चुनाव आयोग ने सोमवार दोपहर 12 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए चुनाव के तारीख की घोषणा की। इस चुनावी संग्राम के बीच आपको बताते हैं बीते पांच सालों में राज्य की सियासत में क्या-क्या बदला? 2018 के चुनाव नतीजे क्या रहे? कब-कब गहलोत सरकार पर […]

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when Gehlot got into trouble
  • October 9, 2023 11:20 am IST, Updated 1 year ago

जयपुर: राजस्थान में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो चुका है। चुनाव आयोग ने सोमवार दोपहर 12 बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए चुनाव के तारीख की घोषणा की। इस चुनावी संग्राम के बीच आपको बताते हैं बीते पांच सालों में राज्य की सियासत में क्या-क्या बदला? 2018 के चुनाव नतीजे क्या रहे? कब-कब गहलोत सरकार पर संकट आया? राज्य में कांग्रेस की जीत का डंका बजाने वाले सचिन पायलट ने कितनी बार गहलोत सरकार के लिए मुश्किलें खड़ी कीं? 2018 के चुनावी नतीजे क्या थे?

2018 चुनाव का लेखा-जोखा

साल 2018 में राजस्थान विधानसभा के चुनाव सात दिसंबर को हुए थे जबकि परिणाम 11 दिसंबर को घोषित हुए। अलवर की रामगढ़ सीट छोड़कर बाकी 199 सीटों पर मतदान हुआ। इस चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को पटखनी देते हुए 99 सीटें से जीत हासिल की। इसके साथ ही प्रदेश में हर पांच साल में सत्ता परिवर्तन का रिवाज कायम रहा। वहीं भाजपा को 73, मायावती की पार्टी बसपा को छह तो अन्य को 20 सीटें मिलीं। हालांकि कांग्रेस को बहुमत के लिए 101 विधायकों की जरूरत थी। कांग्रेस ने निर्दलियों और अन्य की मदद से जरूरी आंकड़ा जुटा लिया। इसके साथ ही राज्य की सत्ता में वापसी की और मुख्यमंत्री के बतौर पद पर अशोक गहलोत को जगह दी गई।

CM चुनने के दौरान हुई गहन चर्चा

मुख्यमंत्री चुनने के लिए तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा सहित पार्टी के शीर्ष नेताओं के बीच गहन चर्चा हुई थी। इसके बाद अशोक गहलोत के हाथों में राज्य की सत्ता सौंपने का फैसला लिया गया। इसके पश्चात राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री पद के दावेदार दोनों नेताओं की खुद के साथ एक तस्वीर ट्वीट की। राहुल गांधी ने ट्वीट कर फोटो को कैप्शन दिया, ‘यूनाइटेड कलर्स ऑफ राजस्थान।’ बसपा और निर्दलीय विधायकों ने सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन सौंप दिया जिसके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत चुने गए। चुनाव के बाद सभी बसपा विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए.

पायलट गुट की बगावत की हुई चर्चा

आपको बता दें कि उस दौरान राजस्थान में हलचल थमी नहीं थी. वहीं राज्य में जब पायलट गुट की बगावत से खड़ा हुआ सरकार गिरने का खतरा जी हा दिसंबर 2018 में सरकार बनने के 19 महीने बाद ही गहलोत सरकार के सामने बड़ा संकट खड़ा हो गया. हालांकि 12 जुलाई 2020 से संकट की शुरुआत हो गई थी जब कांग्रेस के 19 विधायक गहलोत और पायलट गुटों के बीच विभिन्न मुद्दों पर विवादों के बाद दिल्ली आ गए थे। ये विधायक तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के खेमे के थे। इस बीच पायलट ने दावा किया कि उनके पास कुल 30 विधायकों का समर्थन हैं।

विश्वास प्रस्ताव के लिए बैठक

2018 चुनाव की बात करें तो उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और अन्य नेताओं के साथ कांग्रेस विधायकों ने विश्वास प्रस्ताव के लिए एक बैठक की। सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को भी इस मुद्दे पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। 14 जुलाई को उन्हें उनके दो विधायकों सहित राजस्थान के उपमुख्यमंत्री और राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। बगावत के लिए कांग्रेस यहीं नहीं रुकी बाद में पायलट को विधानसभा से उनकी सदस्यता भंग करने के बारे में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष सी. पी. जोशी ने नोटिस भेज दिया। इसके साथ एक और बगावत हुआ पिछले साल सितंबर में राजस्थान सरकार एक बार फिर संकट में आई जब चुनाव से पहले कांग्रेस ने राज्य में नेतृत्व बदलना चाहा। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के कई विधायकों ने अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटाने के विरोध में इस्तीफा देने की धमकी दी। यह वो समय था जब गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अपना नामांकन दाखिल करने की तैयारी में थे। साथ ही, AICC के सदस्यों ने सोनिया गांधी से अशोक गहलोत को पार्टी अध्यक्ष की दौड़ से बाहर करने का अनुरोध किया। 26 सितंबर को सोनिया गांधी के आवास पर राज्य की स्थिति पर चर्चा के लिए एक बैठक हुई।

क्या है विधानसभा की स्थिति?

वर्ष 2018 के चुनाव के बाद 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की 99, भाजपा की 77 सीटें थीं। छह सीटें बसपा और 20 अन्य के खाते में गई थीं। इस वक्त 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के 108, भाजपा के 70 और 21 अन्य हैं। वहीं उदयपुर सीट वरिष्ठ भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया के इस्तीफे के कारण इसी साल फरवरी महीने में खाली हो गई थी जब उन्हें असम का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया। वहीं आपको यह भी बता दें कि 2018 में राजस्थान विधानसभा के चुनाव नतीजे 11 दिसंबर को आए थे ऐसे में इस चुनाव में कांग्रेस के सामने अपना किला बचाने की चुनौती होगी। वहीं, भाजपा अपनी वापसी की कोशिश कर रही हैं। जानकारी के लिए बता दें तो मौजूदा सरकार के सामने बेरोजगारी और अपराध जैसे बड़े मुद्दे हैं जिन्हें विपक्ष द्वारा लगातार सवाल उठाया जा रहा है।

राइट टू हेल्थ बिल का ज़िक्र

वहीं राज्य में चुनाव के कुछ महीनें पहले ‘राइट टू हेल्थ बिल’ पारित कराकर सरकार इसे ऐतिहासिक बता रही हैं। आपको बता दें इसके पहले राज्य सरकार 10 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा कवर देने वाली चिरंजीवी योजना लागू कर चुकी हैं। चुनावी तैयारियों की बात करें तो कांग्रेस और भाजपा लगातार बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं। चुनावी विश्लेषकों की मानें तो भाजपा इस बार मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ सकती है जबकि कांग्रेस अभी भी अशोक गहलोत को सामने रख रही है। मजे की बात यह है कि इस बार राज्य में आम आदमी पार्टी भी विधानसभा का चुनाव लड़ेगी। आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान लगातार प्रदेश के दौरे कर रहे हैं। इसी के साथ सेमीफइनल विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान आज हो गया है। राजस्थान में 23 नवंबर को वोटिंग होना है, वहीं चुनाव का परिणाम 3 दिसंबर को घोषित किया जाएगा।


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